कुल्फी ना मिलने की जिद में बचपन कहीं सिसक रहा था,
रोता देख उसे पास ही योवन खड़ा हो मुसक रहा था ।
बोला, रे बचपन तेरे पास तो बस सिसक है लाचारी है,
मुझे देख मैं स्वतंत्र हूँ रूपया ,बंगला, गाड़ी है ।
सुन के बातें यौवन की, मासूम बचपन ये बोला
सच कहते हो भैया मैं तो रोज सिसकता,रोता हूँ
पर चढते ही मां की गोद में घोड़े बेच मैं सोता हूँ,
क्या ये रूपया,बंगला गाड़ी काफी हैं चैन से सोने को
अगर नहीं तो हे यौवन मुझे बच्चा ही रहने दो ।।
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