Saturday, August 25, 2012

श्री वैशाखनन्दन


एक बार एक  धोबी ने चुनावी रैली का मजा चख लिया

और नेता जी कि सेकुलर विचारों से इतना प्रभावित हुआ

कि अपने गदहे का नाम रमेश खान रख दिया।

एक पत्रकार ने इस कहानी को अपने लेख में अच्छी तरह समेटा,

पर किस्मत का ऐसा खेल चला कि गदहे कि जगह छप गया 'बेटा' ,

खबर पढ़ते ही नेताजी धोबी के घर स्वयं पधारे

धोबी बोला अहो भाग्य हमारे

नेताजी ने पुछा वो कहां हैं जो रहीम और राम पे गये हैं

धोबी बोला जी वो तो अपने काम पे गये हैं

नेताजी बोले ऐसे सेकुलर शिरोमणि ही हमारे प्रदेश  का उद्धार करेंगे

और मै ये ऐलान करता हूं कि श्री रमेश खान जी ही यहाँ  से हमारे उम्मीदवार बनेंगे

नेताजी की राजनैतिक दूरदर्शिता फल गयी

किस्मत का ऐसा खेल हुआ के गदहे को

अभूतपूर्व मतों से जीत मिल गयी ।

किन्तु जब जश्न के माहौल में श्री वैशाखनन्दन का नेताजी के सामने आना हुआ,

मानो किसी दीवाने का अपनी औनलाईन गर्लफ्रेंड से सामना हुआ

नेताजी ने अपने चमचे से पूछा कि इसे पार्टी मे ले जाने का क्या तर्क है

चमचा बोला सर इसमें और बाकियों में बस खादी का ही तो फर्क है

नेताजी ने कहा रे बेवकूफ, गदहा विधान सभा में कैसे जायेगा

चमचे ने समझाया नेताजी ये सेकुलर गदहा है ,

किसी का बाप भी मना  नहीं कर पायेगा ।
 
नेताजी को चमचे के विचार भा गये

और श्री रमेश खानजी विधान सभा में आ गये ।

वहां एक  साथ कई सारे लोग रेंक रहे थे,

और एक दूसरे पर कुर्सियां, जूते फेंक रहे थे ।

यह नजारा देख गदहा बिदक गया

और अपने ही नेता को दुल्लती मार वहां से खिसक गया ।

जा के धोबी से बोला मालिक मुझ पर मत कर अत्याचार ,

एक म्यान में नहीं रह सकती दो दो तलवार

नहीं रह सकती तलवार , कि तू मेरा नाम बदल दे

धोबी बोला अब तू नेता ही रहेगा भले तू अपनी खाल बदल दे ।

नेताओं से कौन बचा है चाहे राम हो,रहीम हो या हो  करतार ,

जहँ जहँ पाँव  पड़े नेतन के तहँ तहँ  बंटाधार ।।

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