वक्त के चौराहे पे खड़ा मैं राहों को बस निहार रहा हूँ
शायद वो आज कुछ कह दे इस उम्मीद में उसे पुकार रहा हूँ ।
पर लगता है कि उसकी नाराजगी कुछ ऐसे मोड़ पर आई है,
मानो उसने मुझसे कभी बात न करने की कसम खायी है
वो दौर भी था जब वो हर वक्त मुझसे बातें किया करता था
मुझसे उसका कहा सुनने की मिन्नतें किया करता था,
कहता था मैं तुझे तेरी ही खुशी का रास्ता दिखा रहा हूँ
तेरी बुद्धी , तेरा ज्ञान ही तेरी बैरन है ये बता रहा हूँ ।
काश की मैं अपने ज्ञान की मदहोशी मे इतना ना खोया होता
तो इस भीड़ की तन्हाईयों में यूं तन्हा खड़ा न रो़या होता
आज अकेला खड़ा हूँ टकटकी बांधे बस इन राहों पर
कोई राह न बता तो न सही
पर ऐ दिल मुझसे कुछ बात तो कर |
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