Saturday, August 25, 2012

बचपन


कुल्फी ना मिलने की जिद में बचपन कहीं सिसक रहा था,

रोता देख उसे पास ही योवन  खड़ा  हो मुसक रहा था ।

बोला, रे बचपन तेरे पास तो बस सिसक है लाचारी है,

मुझे देख मैं स्वतंत्र हूँ  रूपया ,बंगला, गाड़ी  है ।

सुन के बातें यौवन की, मासूम बचपन ये बोला

सच कहते हो भैया मैं तो रोज सिसकता,रोता हूँ

पर चढते ही मां की गोद में घोड़े बेच मैं सोता हूँ,

क्या ये रूपया,बंगला गाड़ी काफी हैं चैन से सोने को

अगर नहीं तो हे यौवन मुझे बच्चा ही रहने दो ।।

अन्तर्मन


वक्त के चौराहे पे खड़ा मैं राहों को बस निहार रहा हूँ

शायद वो आज कुछ कह दे इस उम्मीद में उसे पुकार रहा हूँ ।

पर लगता है कि उसकी नाराजगी कुछ ऐसे मोड़ पर  आई है,

मानो उसने मुझसे कभी बात न करने की कसम खायी है

वो दौर भी था जब वो हर वक्त मुझसे बातें किया करता था

मुझसे उसका कहा सुनने की मिन्नतें किया करता था,

कहता था मैं  तुझे तेरी ही खुशी का रास्ता दिखा रहा हूँ

तेरी बुद्धी , तेरा ज्ञान ही तेरी बैरन है ये बता रहा हूँ ।

काश की मैं  अपने ज्ञान की मदहोशी मे इतना ना खोया होता

तो इस  भीड़ की तन्हाईयों में यूं तन्हा खड़ा न रो़या होता

आज अकेला खड़ा हूँ  टकटकी बांधे बस इन  राहों पर

कोई राह न बता तो न सही

पर ऐ दिल मुझसे कुछ बात तो कर |

श्री वैशाखनन्दन


एक बार एक  धोबी ने चुनावी रैली का मजा चख लिया

और नेता जी कि सेकुलर विचारों से इतना प्रभावित हुआ

कि अपने गदहे का नाम रमेश खान रख दिया।

एक पत्रकार ने इस कहानी को अपने लेख में अच्छी तरह समेटा,

पर किस्मत का ऐसा खेल चला कि गदहे कि जगह छप गया 'बेटा' ,

खबर पढ़ते ही नेताजी धोबी के घर स्वयं पधारे

धोबी बोला अहो भाग्य हमारे

नेताजी ने पुछा वो कहां हैं जो रहीम और राम पे गये हैं

धोबी बोला जी वो तो अपने काम पे गये हैं

नेताजी बोले ऐसे सेकुलर शिरोमणि ही हमारे प्रदेश  का उद्धार करेंगे

और मै ये ऐलान करता हूं कि श्री रमेश खान जी ही यहाँ  से हमारे उम्मीदवार बनेंगे

नेताजी की राजनैतिक दूरदर्शिता फल गयी

किस्मत का ऐसा खेल हुआ के गदहे को

अभूतपूर्व मतों से जीत मिल गयी ।

किन्तु जब जश्न के माहौल में श्री वैशाखनन्दन का नेताजी के सामने आना हुआ,

मानो किसी दीवाने का अपनी औनलाईन गर्लफ्रेंड से सामना हुआ

नेताजी ने अपने चमचे से पूछा कि इसे पार्टी मे ले जाने का क्या तर्क है

चमचा बोला सर इसमें और बाकियों में बस खादी का ही तो फर्क है

नेताजी ने कहा रे बेवकूफ, गदहा विधान सभा में कैसे जायेगा

चमचे ने समझाया नेताजी ये सेकुलर गदहा है ,

किसी का बाप भी मना  नहीं कर पायेगा ।
 
नेताजी को चमचे के विचार भा गये

और श्री रमेश खानजी विधान सभा में आ गये ।

वहां एक  साथ कई सारे लोग रेंक रहे थे,

और एक दूसरे पर कुर्सियां, जूते फेंक रहे थे ।

यह नजारा देख गदहा बिदक गया

और अपने ही नेता को दुल्लती मार वहां से खिसक गया ।

जा के धोबी से बोला मालिक मुझ पर मत कर अत्याचार ,

एक म्यान में नहीं रह सकती दो दो तलवार

नहीं रह सकती तलवार , कि तू मेरा नाम बदल दे

धोबी बोला अब तू नेता ही रहेगा भले तू अपनी खाल बदल दे ।

नेताओं से कौन बचा है चाहे राम हो,रहीम हो या हो  करतार ,

जहँ जहँ पाँव  पड़े नेतन के तहँ तहँ  बंटाधार ।।

परिदृश्य



बच्चे ने पूछा बापू आज गाँव  मे रौशनी है

और चहल पहल खूब सारी है,

बाप बोला बेटा ये हमारे राष्ट्रीय  पर्व चुनाव की तैयारी है।

माइक टेसटिंग ,माइक टेसटिंग नेताजी चिल्ला रहे थे

अपने पिटारे में  से आश्वासनो का अमृत जनता को पिला रहे थे

बोले एससी को ३०, ओबीसी को ३३, और मुसलमान को २५ प्रतिशत  रिजर्वेसन होगा

सबको मोबाईल मिलेगा, बिल मे भी कन्शेसन होगा

ये सब सुन बेटे ने पूछा, बाबा हम किस जाति मे आते हैं,

बाप बोला -बेटा भूखों की अलग जात है हम उसी में पाये जाते हैं,

बाबा क्या कभी हम भी किसी कोटे मे आ पायेंगे

बाप बोला जब देश में एक भी भ्रष्ट नेता नहीं पाये जायेंगे

और तब सरकार केवल आश्वासन ही नहीं बांचेगी,

पर बेटा न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी ।