Thursday, December 19, 2013


आज मुझको रास्ते मे देश मेरा मिल गया,
बोला तेरे दिल मे मुझको एक कोना चाहिए,
अबतक रोया बहुत है खुद के लिए,
अब थोड़ा तुझको मुझपर भी रोना चाहिए |

भर रहा था दूसरों का पेट जो,
वो बेचारा भूख से ही मर गया,
लाश पर उसकी कोई सियासत ना कर सके,
देश मे ऐसा कड़ा क़ानून होना चाहिए|

हाथ मे तेरी वो रोटी देख कर ललचाता है,
फेंक दी तूने जो रोटी बीन कर वो ख़ाता है,
वो भूख की निर्मम व्यथा को जी सके,
रोटी का ऐसा कोई कूड़ेदान होना चाहिए  |

सोचते हो की तुम बहुत तरक्की कर गये,
नारी की इज़्ज़त ना रखी उसका सौदा कर गये,
बिक गयी वो आज खुद ही बीच बाज़ार मे,
क्यूकी उसके बच्चे को एक खिलोना चाहिए |

रुपया पैसा सब है पर इंसान निर्धन हो गया,
भूख अपनी बढ़ गयी और दिल ये छोटा हो गया,
आज तो इंसान बस अपने लिए ही जी रहा,
इंसान को भी थोड़ा तो इंसान होना चाहिए||
ईश्वर ने जब इंसान को बनाया होगा,
संवेदनाओं के सृजन का ख़याल आया होगा,
पर उसने कभी न सोचा होगा की ऐसा गजब हो जाएगा,
इंसान पैदा तो इंसान होगा पर बढ़ के पत्थर बन जाएगा |


दूसरों के दर्द का उसपे असर ना आजकल ,
खून के रिश्तों को फीका कर रहा वो आजकल ,
स्वार्थ सिद्धि मे इंसान इतना खो गया,
क्या बताउ आजकल वो कितना निर्मम हो गया||

इंसान का ये आचरण बिल्कुल समझ नही आता है,
खुशियों से भागकर खुशियाँ ढूँढने जाता है,
चन्द भौतिक वस्तुओं को खुशियाँ समझ बैठा है जो,
एक दिन उनके ही बीच तन्हा खड़ा रह जाता है||

मूर्खता का इससे बड़ा प्रमाण क्या कहलाता है,
अपने लिए क़ैद का निर्माण कर वो इतराता है,
फिर उसी क़ैद मे खुद को फँसा जब पाता है,
उससे उम्दा क़ैद का निर्माण करता जाता है ||